________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 375 क्यों ना जीत स्वयंवर तूं लाया मुझे, मेरी चाह थी मनमें जो तेरे वसी / था तूं कौन शहेर मुझे दे तो बता, क्या स्वयंवर की पहोची खबर ही नहीं / अ० // 4 // हुवा सो तो हुआ अब मान कहा, मुझे समपे जलदीसे दे तूं पठा। कहे न्यामत वगर न तूं देखेंगा वह, तेरे सर की कसम तेरा सिर ही नहीं // . अरे रावण तूं० // 5 //