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________________ 371 . श्रीजैनशान-गुणसंग्रह उनको पुरखा कहनेवाले वृथा तुम्हारा दोर दमाम, . क्षय जाता है वंश हमारा तुम करते एशोआराम // 2 // बकरी-नदीनालोंका पानी पीकर छूटी हम चरती जंगल, दूध बाल बच्चे देकर हम सबका करती हैं मंगल / फिर भी प्यारे पुत्र हमारे हाथ कसाइयों के जाते, तनिक लोभ के खातिर देखो रंक मौतका दुख पाते // 3 // बकरा-माता है जब जगदंबा तब हम भी इसके पूत हुए, मामा है सबका वह तब हम बंकरेभी भानजे हुए। ये कैसे खावेंगे हमको लोगो! तुम कुछ गौर करो, वामपंथियों की भ्रमणा से तुम हमको क्यों ख्वार करो // 4 // मुर्गा-कुक्कुट नाम जगतमें मेरा कालज्ञानी कहलाता हूं, अंधेरी बादलियों में भी ठीक समय बतलाता हूं। कुदरतकी मैं घडी बना हूं मुझ जीवनकी कदर करो, पैसेकी बरबादी जिनसे उन घड़ियों को दूर धरो // 5 // समसाथ-सतजुगमें राजा थे रक्षक अब ये भक्षक हुए करूर, इनसे नहीं जीवनकी आशा ये तो हैं हमही पर शूर / तुम अर्जी हम पशुपक्षीकी सुनकर हे लक्ष्मी के पूत !, दया धर्मका ज्ञान जगतको देवोज्यों भागे जमदूत // 6 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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