________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 365 लक्ष्मी है वीजचपला, यौवन भी दिन चारा। क्षणनाशी जिंदगानी, कर देह का सुधारा / चेतन० // 3 // सुंदर महेल वाडी, माडी तुरंग हाथी / आखिर ये छोड जाना, नहीं होय कोई साथी / चेतन० // 4 // मोटर घोडेकी गाडी, लाडी बहोत प्यारी / सब शौक की ये चीजें, छिनमें विनाशहारी। चे० // 5 // पलवन्त चक्रवर्ती, राजे प्रसिद्ध नामी / सब राज पाट छोडी, परलोक पंथ गामी / चे०॥६॥ दुनिया का मोह छोडो, लेबो प्रभु का शरणा / विनशे ज्युं कर्म फंदा, पावो सौभाग्य झरणा / . . चेतन तूं चेत० // 7 // उपदेश पद ( देशी भर्तृहरि की) सार नही है संसारमो, करो मनमा विचार जी। . नेत्र उघाडी जोइये, करिये आत्मसुधार जी / . सार नहीं है० // 1 // जाग जाग भवि प्राणिया, आयु झटपट जाय जी। चखत मये फरी नावशे, कारज कंइय न थाय जी। सार नही है // 2 //