________________ - श्रीजैनशान-गुणसंग्रह इस तन डेरा छोड चलेगा, हंसा परभववनमें / मुसा / मट्टीका मठ फुक दियेगा, मनकी रहेगी मनमें // मु० // 1 // अक्कड फक्कड मूछ मरोडत, त्रास पडावत जनमें / मु० / पर्णकुटी जालवतां आखर, गिर पडेगी पवनमें / मु० // 2 // तन धन वैभव सुपना जैसा, संध्या रंग गगन में / मु० / पल की खबर नहीं प्राणीने, राव रंक होय छिन में // मु०॥३॥ क्या अभिमान करे मन मर्कट, सांकलचन्द स्वजन में। तन धन अर्पण कर परमारथ, मन धर प्रभु के भजन में / / मुसाफर० // 4 // समय की दुर्लभता पर पद ( राग-नाथ कैसे गज को बन्ध० ) कदी नहीं समय गयो फरि मलशे, भव भ्रमण कर्ये शुं वलशे, कदी नहीं० आं० // आ काया छे काचनो कूपो, तटक दइने तटके / पाणीना परपोटा सरखी, फटक दइने फटके / कदी० // 1 // क्रूर कषाय क्रूरताधारी, पाप कूपमें पटके / आ भवसागर पार उतरतां, अधवच जातां अटके // कदी नहीं // 2 //