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________________ . श्रीजैनशान-गुणसंग्रह मत वेदांत ब्रह्मपद ध्यावत, निश्चय पख उर धारी / मीमांसक तो कर्म वदे ते, उदय भाव अनुसारी / मारग साचा० // 2 // कहत बौद्ध ते बुद्ध देव मम, क्षणिक रूप दरसावे / नैयायिक नयवाद ग्रही ते, करता कोउ ठेरावे / मारग साचा० // 3 // चारवाक निज मनःकल्पना, शून्यवाद कोउ ठाणे / तिनमें भये अनेक भेद ते, अपनी अपनी ताणे / मारग साचा० // 4 // नय सरवंग साधना जामें, ते सरवंग कहावे / चिदानंद ऐसा जिन मारग, खोजी होय सो पावे / मारग साचा० // 5 // जैनस्वरूप पद . (राग धन्याश्री) परमगुरु जैन कहो क्युं होवे, गुरुउपदेश विना जन मूढा, दर्शन जैन विगोवे / परमगुरु० // 1 // कहत कृपानिधि शमरस झीले, कर्म मेल जे धोवे / बहुलपापमल अंग न धोवे, शुद्र रूप निज जोवे / परमगुरु० // 2 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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