________________ 322 4 सज्ज्ञायसंग्रह माछी पकडे छै जालमां, जलमाथी जेम मीन जी। तेम मारा नेत्रना बाणथी, करीश हुँ तमने आधीन जी। जोग रे० // 13 // ढोंग करवा तजी दइ, प्रीते ग्रहो मुज हाथ जी। .. कालजु कपाय छे माहरूं, वचनो सुणीने नाथ जी। . . जोग रे० // 14 // बार बरस तुज आगले, रह्यो तुज आवास जी / विध विध सुख मैं भोगव्यां, कीधा भोगविलास जी / . आशा रे तज हवे माहरी // 15 // त्यारे हतो अज्ञान हुँ, हतो कामथी अन्ध जी / पण हवे ते रस मैं तज्यो, सुणी शास्त्रना बन्ध जी। आशा रे० // 16 // ज्ञानी ऋषि ने मुनियो, मोटा विद्वान भूप जी। . ते पण दास बनी गया, जोई नारीनुं रूप जी। जोग रे० // 17 // साधुपणुं रे स्वामी नहीं रहे, मिथ्या कहुँ नही लेश जी। देखी रे नाटारम्भ माहरो, तजशो साधुनो बेष जी। जोग रे० // 18 //