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________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह संग से रहित है और तेरे दोनों हाथ शस्त्ररहित हैं इस लिये तू ही सत्य वीतराग देव है।" हरिभद्र सूरि का भी एक श्लोक यहां याद आ जाता है "मृर्तिरेव तवाचष्टे, भगवन् ! वीतरागताम् / नहि कोटरसंस्थेऽग्नौ, तरुर्भवति शाद्वलः / 1 // " "हे भगवन् ! आपकी मूर्ति ही वीतरागदशा को बता रही है। यदि आपमें राग-द्वेषादि दोष होते तो आपकी यह मूर्ति ऐसी शान्त कभी नहीं होती, क्यों कि मूल में अग्नि के रहते वृक्ष कभी हरा नहीं होता / " ___ ज्यादा क्या कहें, जैसी मूर्ति होती है वैसा ही प्रभाव देखने वालों पर पड़ता है / कोट पटलून बूट स्टोकिंग पहने हुए एक जेंटलमेन् का फोटो देखने पर शौकिनी का भाव पैदा होता है और ध्यान समाधि में बैठे हुए एक त्यागी महात्मा की तसवीर देख कर वैराग्य भाव पैदा होता है। इसी तरह सर्वथा राग-द्वेष रहित तीर्थंकर भगवान् की शांत मूर्ति देखकर हमें वैराग्यभाव पैदा हो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? / इसी लिये कहा जाता है कि "वीतरागं स्मरन् योगी, वीतरागत्वमश्नुते / " . "योगी पुरुष वीतराग का स्मरण करते हुए वीतराग दशा - को प्राप्त होते हैं।” इस प्रकार जब मूर्ति प्रभाव वाली सिद्ध हुई तो उसके
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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