________________ ... श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 313 एह संसार असार दुखागर, श्री जिनधर्म भजीजे रे प्राणी, आतमसाधन कीजे / तन यौवन आउखो दिन दिन, अंजलि जल जिम छीजे / तूं निश्चिंत थइ रह्यो भोला, तुज ऊपर जम खीजे रे, / प्राणी। आतम० // 2 // मात पिता सुत भाइ भगिनी, कांतादिक परिवार / आप स्वारथ खावाने कारण, मलियो छ निरधार रे प्राणी। आ०॥३॥ पाप करी बहु धन तूं मेले, खासी सघलोइ साथ / पाप तणा फल तूं भोगवशे, दुर्गति एकलो अनाथ रेप्राणी। आ०॥४॥ ___क्रोध मान मद मत्सर मातो, जातो काल न जाणे / संत साधुनी निंदा करतां, हियंडे शंका न आणे रे प्राणी / आ० // 5 // - इंद्र धनुष जिम जलपरपोटो, जेहवो संध्यानो राग / जिम चंचल सौदामिनी झवको, तिम धन यौवन लाग रे / पाणी / आ० // 6 // म्हारं म्हारं तुं करी रह्यो भोला, ताहरूं शरीर न होइ / आव्यो एकिलो ने जाशे एकिलो, ज्ञान दृष्टि करी जोइ रे प्राणी। आ० // 7 // थोडिसी ऋद्धि मुख आगल देखी, झूठो करे अभिमान / जे सुरपति ज्यां जेहने हुंता, बत्तीस लाख विमान रे प्राणी / 'आ० // 8 //