________________ 311 . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह जोगी तो जङ्गलमा वासो वसिया जो, वेश्याने मंदिरिय भोजनरसिया जो। तुमने दीठा एहवा संयम साधता जो / // 6 // साधशुं संयम इच्छारोध विचारी जो, . कूर्मापुत्र थया नाणी घरबारी जो / पांणीमाहे कोरं पङ्कज जाणिये जो // 7 // जाणिये तो सघळी तमारी वात जो, मेवा मीठाइ रसवंता बहुभात जो। अंबर भूषण नव नवली भाते लावता जो // 8 // लावता तो तुं देती आदरमान जो, काया जाणुं पतंगरंग समान जो / ठालीने शी करवी एहवी प्रीतडी जो // 9 // प्रीतलडी करता ते रंगभर सेज जो, रमता ने देखाडता घणुं हेज जो। रीसाणी मनावी मुजने सांभरे जो // 10 // सांभरे तो मुनिवर मनडुं वाले जो, ढांक्यो अग्नि उघाडयो परजाले जो। संजममाहे ए छे दूषण मोटकुं जो // 11 // मोटकुं तो आव्युं तुं नन्दनुं तेथें जो, जातां न वहे कांइ तमारं मनडुं जो / मैं तमने त्यां कोल करीने मोकल्या जो // 12 //