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________________ 2 जिनपूजाविधि / . 9 टट्टी जाना। 1. जुगार चोपट पत्ते खेलना ऊपर लिखी हुई आशातना टालने में विनय धर्म प्रकट होता है और भक्ति भी विशुद्ध मानी जाती है / दरवार की इजलास में या कोर्ट कचहरियोंमें जाना पडता है तो वहांभी कितना अदब (विनय) रखना पडता है ? / कपडे अच्छे पह- . नते हैं, विचार कर बोलते हैं, गाली गलोज मुख से नहीं निकालते, हर तरह से सोच विचार कर चलते हैं तो भगवान् तो तीन जगत् के स्वामी ह, इन का अदब करें उतनाही थोडा हैं। भगवान् वीतराग हैं, इन को किसी प्रकारकी दरकार नहीं है, मगर भक्ति करने वाले का फर्ज है कि पूज्य पुरुष के प्रति अपना अंतःकरण से बहुमान दिखलावे और किसी प्रकार की आशातना न करे / 2 जिनपूजाविधि / सामान्य उपदेश / तीर्थंकर देव की पूजा करना यह भी हर एक जैन श्रावक का खास कर्तव्य है। शास्त्रकारों ने श्रावकों के जो षट्कर्म बतलाये हैं उनमें जिनपूजा को प्रथम नम्बर में रक्खा है, कारण कि एकनिष्ठा से की गई यह जिनपूजा समकितकी शुद्धि करने के साथ मोक्ष तक के उत्तम फल देने वाली है / कहा भी है
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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