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________________ 1 देवदर्शनविधि तो अवश्य धोने चाहिये / फिर उत्तम कपडे पहिन कर दर्शन करने को जावे / मंदिर तरफ पवित्र भाव से एक एक कदम रखने वाला मनुष्य कितना फल प्राप्त करता है वह नीचे दिये हुए श्लोक में पढिये"यास्याम्यायतनं जिनस्य लभते ध्यायंश्चतुर्थ फलं, षष्ठं चोत्थित उद्यतोऽष्टममथो गन्तुं प्रवृत्तोऽध्वनि / श्रद्धालुर्दशमं बहिर्जिनगृहात्प्राप्तस्ततो द्वादशं, मध्ये पाक्षिक मीक्षिते जिनपतौ मासोपवासं फलम् // 1 // तात्पर्य मंदिर में जाने का विचार करने पर 1 उपवास का फल, दर्शन के लिये खडा होते 2 उपवास का फल, चलने को तैयार हुआ कि 3 उपवास का फल, मंदिर तर्फ बिदा हुआ कि 4 उपवास का फल, मंदिर के पास पहुंचा कि 5 उपवास का फल, मंदिर में प्रवेश करते 6 उपवास का फल, मंदिर के मध्य भाग में जाते 15 उपवास का फल, और साक्षात् भगवान् को देखते तो 1 मासखमण का फल होता है। यहां ध्यान रहना चाहिये कि ऊपर मुजब फल तब ही होगा जब कि दर्शन करने वाला मन वचन और काया के अशुद्ध व्यापार को रोक कर मंदिर तर्फ पवित्र भावना से गमन करेगा। .. श्रीमान् आनन्दघनजी महाराज श्री सुविधिनाथ भगवान् के स्तवन में फर्माते हैं
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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