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________________ 184 5 विविध विचार काल 60 घडी का होता है। पंचांगों में वार के बाद जो नक्षत्र लिखा रहता है वही चंद्रनक्षत्र है। रोगी मनुष्य का जिस चंद्रनक्षत्र में जन्म हुआ हो वह उस का जन्म नक्षत्र है / अगर रोगी का जन्म नक्षत्र न मालूम हो तो उस के प्रसिद्ध नाम से जो नक्षत्र बनता हो वही उस का जन्मनक्षत्र मान लेना चाहिये। ऊपर जो तीन त्रिनाडी चक्र लिखे हैं उन में जो कि अधिक जगह विरोध नहीं आता, तथापि कहीं कहीं ऐसा भी प्रसंग आ जाता है कि एक चक्र के अनुसार मृत्युयोग मालूम होता है तब दूसरे के विधानानुसार दीर्धपीडा और तीसरे के विधान से स्वल्पकष्ट / ऐसे स्थानों में परीक्षकों को बहुत सोच विचारके भविष्य कहना चाहिये, अन्यथा वे झूठे पडेंगे, सिर्फ एक ही चक्र के अनुसार मृत्युयोग बनता हो लेकिन रोगोत्पत्ति यदि शुक्ल पक्ष में हुई हो और उस समय रोगी का जन्म चंद्र हो अथवा आठमा चंद्र हो और अन्य भी एक दो क्रूर ग्रह उस नाडी में पडे हों तो रोगी का बचना कठिन ही समझना चाहिये / इसी प्रकार रोगोत्पत्ति कृष्ण पक्ष में हुई हो और उस समय-३-५--७-वीं तारा में से कोई एक तारा हो और सूर्य और रोगि के नक्षत्र वाली नाडी में अन्य भी करग्रह वर्तमान हों तो भी रोगी का बचना कठिन है, इस के विपरीत त्रिवेध होने पर भी रोगोत्पत्ति के समय तारा अनुकूल होगी और अन्य
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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