________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह (4) धारणागति अथवा नामा जोडा ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार हर एक नामधारी पदार्थ का हर एक के साथ एक प्रकार का आभिधानिक संबंध रहता है / वह संबन्ध अनुकूल और प्रतिकूल दो प्रकार का होता है। यह अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों चीजों के नाम, नक्षत्र की योनि, गण, राशि और नाडीवेध तथा नामाक्षर से जानने योग्य वर्ग और लभ्य-देय (लेना देनी) इन छः बातों को देख कर निश्चित की जाती है। 1 योनि भिन्न भिन्न नक्षत्रों की भिन्न भिन्न योनियां होती हैं, जैसे अश्विनी की 'घोडा' भरणी की 'हाथी' इत्यादि, इन में जिन दो व्यक्तियों के नक्षत्र विरुद्धयोनि वाले होते हैं वहां 'योनिवैर' कहलाता है, जैसे किसी एक का जन्म नक्षत्र 'अश्विनी' है जिस की योनि 'घोडा' है और दूसरे का जन्म नक्षत्र 'हस्त' है जिस की योनि 'भैंसा' है तो इन दो नक्षत्रवाली व्यक्तियों में योनिवैर होने की वजह से योनि की अपेक्षा से संबन्ध अनुकूल नहीं कहलायेगा / 2 गण-. 'नक्षत्रों के गण अर्थात् विभाग 3 हैं-देवगण, मानवगण और राक्षसगण।