________________ 88 3 श्रावक-द्वादश व्रत विकथा करे, 8 हांसी करे, 9 गरम वाक्य निकाले, 10 किसी को 'आओ' 'जाओ' कहे / काया के 12 दोप-१ आलस (प्रमाद) रखना, 2 नींद लेना, 3 घुटने ओंधे करना, 4 अस्थिर आसन, 5 नजर फिराना, 6 अन्य कार्य में प्रवर्तन, 7 भीत का सहारा लेना, 8 शरीर के अवयव छिपाना, 9 मेल उतारना, 10 खाज खनना, 11 काटके पाडना और 12 लंबे पांव करना। ऊपर कहे 32 दोषों से रहित कम से कम एक सामायिक श्रावक हमेशा करे। शुद्ध सामायिक से ही आत्मा में गुण प्रकट होता है, पूर्व काल में केशरीचोर ने मन वचन और काया की एकाग्रता से शुद्ध सामायिक करने से केवल ज्ञान प्राप्त किया था यह बात शास्त्र में प्रसिद्ध है। शुद्ध सामायिक का फल उपदेशसप्तति ग्रंथ में यों बताया है- . "बाणवइ कोडीओ, लक्खा गुणसहि सहस पणवीसं। नवसय पणवीसाए, सतिहा अडभाग पलियस्स॥१॥" अर्थात्-९२ क्रोड 59 लाख 25 हजार 925 नौ सौ पच्चीस पल्योपम के ऊपर 1 पल्योपम के 8 भाग में से 3 भाग अधिक, इतने पल्योपम का स्वर्ग गतिका आयु बांधता है। प्रतिज्ञा "मैं देवगुरु साक्षिक सामायिक व्रत स्वीकार करता हूं। आजीवन धारणा मुजब यथाशक्ति सामायिक करूंगा।"