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________________ 86 - 3 श्रावक-द्वादशवत किसी को हसावे या किसी को क्रोध उत्पन्न करावे यह पहला अतिचार / - (2) असंबद्ध वचन-वाहियात वचन निकाले, दूसरों के मर्म खोले, वैर बढाने वाले चुगलीखोर वचन निकाल कर फिजूल बकवाट करे यह दूसरा अतिचार / / _ (3) भोगोपभोगातिरेक-अपने शरीर के लिये जितने की जरूरत हो उससे अधिक पदार्थ उपयोग में ले यह तीसरा अतिचार। - (4) कौकुच्य वा मर्म कथन-जिसके बोलने से दूसरों के दिल में काम या क्रोध का जोश उत्पन्न हो या वियोग की वार्तायुक्त कथा तथा शृंगार से भरी हुई कविता सुनाकर काम भाव जागृत करना यह चौथा अतिचार। (5) संयुक्ताधिकरण-ऊखल के साथ मुसल रखना, धनुष के साथ तीर रखना इत्यादि हिंसा के उपकरणों को तय्यार कर रखना यह पांचवा अतिचार है, कारण कि शस्त्र हाजर रखने से हर कोई इसका गेर उपयोग कर सकता है उस आरंभ का भागी शस्त्र रखने वाला श्रावक बनता है, वास्ते पापोपकरणों को जोड कर न रक्खे / सामायिकवत. स्वरूप रागद्वेषादि विषमताओं को दूर हटा कर दो घडी (48 मिनट) तक समभाव में रहना इसको सामायिक कहते हैं /
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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