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________________ 532 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि हेज्जा ! से णं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? गोयमा ! णो इणढे समठे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ / एवं जाव असंखेज्जपए सिओ। अतगंपएसिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरघारं वा ओगाहेज्जा ?हंता! ओगाहेज्जा / से णं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? गोयमा! अत्थेगइए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा अत्थेगइए णो छिज्जेज्ज वा णो भिज्जेज्ज वा। एवं अगणिकायस्स मज्झमझेणं तहि णवरं झियाएज्जा भाणियव्वं, एवं पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झमाझेणं तहिं उल्ले सिया, एवं गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा हि विणिहायमावज्जेज्जा, उदगावत्तं वा उदर्गाबदं वा वा ओगाहेज्जा से णं तत्थ परियावज्जेज्जा // 213 // परमाणपोग्गले णं भंते ! कि सअड्ढे समज्झे सपएसे ? उदाहु अणड्ढे अमझे अपएसे ? गोयमा ! अणड्ढे अमज्झे अपएसे णो सअड्ढे णो समझे णो सपए से / दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे कि सअद्धे समज्झे सपएसे उदाहु अणद्धे अमझे अपएसे ? गोयमा ! समद्धे अम. ज्झे सपएसे णो अणद्धे णो समझे णो अपएसे। तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ? गोयमा ! अणद्धे समज्शे सपएसे णो सअद्धे णो अमझे णो अपएसे / जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ सहा भाणियव्वा / संखेज्जपएसिए णं भंते ! खंधे किं सअड्ढे 6 ? गोयमा ! सिय सअद्धे अमझे सपएसे सिय अणड्ढे समझे सपएसे जहा संखेज्जपएसिओऽवि लहा असंखेज्जपएसिओवि, अणंतपएसिओ वि // 214 // परमाण. पोग्गले णं भंते ! परमाणपोग्गलं फूसमाणे कि देसेणं देसं फुसइ 1 देसेणं देसे फुसइ 2 देसेणं सव्वं फुसइ 3 देसेहिं देसं फुसइ 4 देसेहिं देसे फुसइ 5 देसेहि सव्वं फुसइ 6 सव्वेणं देसं फुसइ 7 सव्वेणं देसे फुसइ 8 सव्वेणं सव्वं फुसइ & ? गोयमा ! णो देसेणं देसं फुसइ णो देसेणं देसे फुसइ णो देसेणं सव्वं फुसइ णो देसेहिं देसं फुसइ णो देसेहिं देसे फुसइ णो देसेहि सव्वं फुसइ णो सत्वेणं देसं फुसइ णो सव्वेणं देसे फुसइ सम्वेगं सव्वं फुसइ / एवं परमाणुशोगले दुप्पएसियं फुसमाणे सत्तमणवमेहि फुसइ, परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसमाणे णिपछिमहि तिहि फु०, जहा परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसाविओ एवं फुसावेयव्वो जाव अणंतपएसिओ / दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा ? तइयणवमेहि फुसइ, दुप्पएसिओ दुप्पएसियं
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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