________________ 464 अगं-पविट्ठ सुत्ताणि से गूणं तव खंदया ! पुव्वरत्तावरत्तकालस० जाव जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था--एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं तवेणं ओरालेणं विउलेणं तं चेव जाव कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ 2 कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलंते जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए, से गूणं खंदया ! अढे समठे ? हंता अस्थि / अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं // 63 // तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुष्णाए समाणे हद्वतुट्ठ जाव हयहियए उट्ठाए उठेइ 2 समणं भगवं महा० तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ 2 जाव णमंसित्ता सयमेव पंच महव्वयाई आरहेइ 2 त्ता समणाय समणीओ ये खामेइ 2 ता तहारूवेहि थेरेहि कडाईहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं 2 दुरूहेइ मेहघणसण्णिगासं देवसण्णिवायं पुढविसिलावट्टयं पडिलेहेइ 2 उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ 2 दब्भसंथारयं संथरइ 2 त्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकणिसण्णे करयलपरिग्गहियं दसंणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-णमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ म० जाव संपाविउकामस्स, वंदामि गं भगवंतं तत्थ गयं इहगए, पासउ मे भयवं तत्थगए इहगयं ति कट वंदद णमंसइ 2 एवं वयासी-पुष्विपि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्ले पाच्चक्खाए जावज्जीवाए इयाणिपि य णं समणस्स भ० म० अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि, एवं सव्वं असणं पाणं खा० सा० चउन्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, जंपि य इमं सरीरं इठे कंतं पियं जाव फुसंतु त्ति कटु एयपि णं चरिमेहि उस्सासणीसासेहिं वोसिरामि त्ति कटु सलेहणाझूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ / तए णं से खंदए अण० समणस्स भ० म० तहारूवाणं वेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए // 64 // तए णं ते थेरा भगवंतो लंदयं अण० कालगयं जाणित्ता परिणिन्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति 2