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________________ भगवई,स. 1 उ.६ एगिदियवज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया / एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा / जहा पाणाइवाए तहा मुलावाए तहा अदिण्णादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले। एवं एए अट्ठारस, चउवीसं दंडगा भाणियव्वा, सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं जाव विहरइ // 52 // तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे णामं अणगारे पगइभद्दए पगइमउए पगइविणीए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणें भहए विणीए समणस्स भगवओ महावीरस्स भदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे. माणे विहरइ। तए णं से रोहे णामं अणगारे जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-पुटिव भंते ! लोए पच्छा अलोए पुटिव अलोए पच्छा लोए ? रोहा ! लोए य अलोए य पुस्विते पच्छ पेते दोवि एए सासया भावा, अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! पुव्वि भंते ! जीवा पच्छा अजीवा युवि अजीवा पच्छा जीवा ? अहेव लोए य अलोए य तहेव जीवा य अजीवा य, एवं भवसिद्धिया य अभवसिद्धिया य सिद्धी असिद्धी सिद्धा असिद्धा / पुचि भंते ! अंडए पच्छा कुक्कुडी पुटिव कुक्कुडी पच्छा अंडए ? रोहा ! से गं अंडए कओ? भयवं ! कुक्कुडीओ। सा णं कुक्कुडी कओ ? भंते ! अंडयाओ। एवामेव रोहा ! से य अंडए साय कुक्कुडी, पुटिवपेते पच्छापेते दुवे ते सासया भावा, अणाणुपुत्वी एसा रोहा! पुव्वि भंते ! लोयंते पच्छा अनोयंते पुटिव अलोयंते पच्छा लोयंते ? रोहा ! लोयंते य अलोयंते य जाव अणाणुपुटवी एसा रोहा ! पुटिव भंते ! लोयंते पाच्छा सत्तमे उवासंतरे पुच्छा। रोहा ! लोयंते य सत्तमे उवासंतरे पुट्विपि दोवि एए जाव अणाणपुटवी एसा रोहा.! एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए, एवं घणवाए घणोदही सत्तमा पुढवी, एवं लोयंते एक्केक्केणं संजोएयवे इमेहि ठाणेहितंजहा-उवासवायघणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा / रइयाई अत्थिय समया कम्माइं लेस्साओ // 1 // दिट्ठी दंसण णाणा सण्ण सरीरा य जोग उवओगे / दवपएसा पज्जव अद्धा कि पुटिव लोयंते ? // 2 // पुटिव भंते ! लोयंते पच्छा सव्वद्धा ? जहा लोयंतेणं संजोइया सवे ठाणा एए एवं अलोयंतेणवि संजोएयवा सव्वे / पुटिव भंते ! सत्तमे उवासंतरे पच्छा सत्तमे तणुवाए ? एवं सत्तमं उवासंतरं सव्वेहि समं संजोएयध्वं जाव सम्वद्धाए। पुवि भंते !
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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