SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 330 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि पाणा वोच्छिनिस्संति थावरा पाणा वोच्छिजिस्मति तसा पाणा भविस्मति वा एवं पि एगा लोगढ़िई 50 ५ण एवं भूयं वा 3 जंलोर अलोए भविस्सइ अलोए'वा लोए भविस्सइ एवं एगा लोगट्टिई प० 6 ण एवं भूयं वा 3 जे लोए अलोए पविस्सइ अलोए वा लोए पविस्सइ एवं एगा लोगढ़िई प० 7 जाव ताव लोए ताव ताव जीवा जाव ताव जीवा ताव ताव लोए एवं एगा लोगढ़िई प० 8 जाव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गइपरियाए ताव ताव लोए जाव ताव लोए ताव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गइपरियाए एवं एगा लोगट्ठिई प० 9 सम्बेसु वि णं लोगतेसु अबद्ध. पासपुट्ठा पोग्गला लुक्खत्ताए कति जेणं जीवा य पोग्गला य णो संचायंति बहिया लोगता गमणयाए एवं एगा लोगढ़िई पण्णता / / 1 / / दसविहे सद्दे प० तं० णीहारि पिंडिमे लुक्खे भिण्णे जरिए इय; दी हे रहस्से पुहत्ते य, काका खिंखि. णिस्सरे / / 2 / / दस इंदियत्थातीता प० तं० देमेण वि एगे सद्दाइं सुणिंसु सवेण वि एगे सहाइं सुणिंसु देसेण वि एगे रूवाई पासिंसु सवेण वि एगे रूवाई पासिंह एवं गंधाइं रसाइं फासाइं जाव सवेण वि एगे फामाइं पडिमंवेदेंसु / / 3 / / दस इंदियत्था पडुप्पण्णा प० तं०-देसेण वि एगे सहाई मुणेति, सवेण वि एगे सदाई सुणेति, एवं जाव फासाइं। दम इंदियत्था अणागया प० तं०-देसेण वि एगे महाई सुणिमति सव्वेण वि एगे सहाई सुणिस्संति एवं जाव सव्वेण वि एगे फामाई पडिगंवेदेस्संति / / 4 / / दसहि ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा तं०-आहारिजमाणे वा चलेज्जा, परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा, उस्मसिज्जमाणे वा चलेज्जा, णिस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा, वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा, णिज्जरि जमाणे वा चलेजा, विउविजमाणे वा चलेजा, परियारिन्जमाणे वा चलेजा, जावाटे वा चले जा, वायपरिग्गहे वा चलेज्जा // 5 // दसहिं ठाणेहिं कोहप्पत्ती सिया तं० मणुण्णाई मे सदफरिसरसरूवगंधाइमवहरिंसु अमगुणाई मे सहफरिसरसरूवगंधाई उवहरिसु, मणुण्णाइं मे सद्दफरिगरसरूवगंधाई अवहरड, अमगुणाई मे सहफरिसजावगंधाई उत्रहरइ, मगुणाई मे सद्द जाव अवह रिस्सइ, अमणुणणाई. गे सद्द जाव उवहरिस्मइ, मगुण्णाई मे सद्द जाव गंधाई अवहरिमु वा अवहरड अब रिस्सइ अमगुणाई मे सह जाव उवहरिंसु वा उवहरइ उपहरिस्सइ, मणुणामणुगणाई सद्द जाव अवहरिंसु अवहरइ अवहरिस्सइ, उवहरिंसु उवहरइ उवह रिस्सइ अहं च णं
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy