SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 174 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियव्वा एकेके, अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसम्भवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुकमा णाणाबिहजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलम्बुगत्ताए हडत्ताए कसेरुगत्ताए कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमृयत्ताए णलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोण्डरीयमहापोण्डरीयत्ताए सयपत्तत्ताए सहस्सपत्तत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिस भिसमुणालपुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउटृति / ते जीवा तेसिं गाणाविहजोणियाण उदगाणं सिणेहमाहा रेति / ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं / अवरे वि य गं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं एगो चेव आलावगो / / 11 / / अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेसिं चेव पुढवीजोणिएहिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं रुक्खहिं, रुक्खजोणिए हिं मूलेहिं जाव बीए हिं, रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं अज्झारोहेहिं, अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं, पुढविजोणिएहिं तणेहिं, तणजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिए हिं मूलेहिं जाव बीएहिं / एवं ओसहीहि वि तिण्णि आलावगा एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा / पुढविजोणिएहि वि आएहिं काएहिं जाव कूरेहिं उदगजोणिए हिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं, रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीए हिं एवं अज्झारुहेहि वि तिण्णि / तणेहिं बि तिण्णि आलावगा। ओसहीहिं वि तिण्णि, हरिएहिं वि तिण्णि, उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउटुंति / ते जीवा तेसिं पुढवीजोणियाणं उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहीजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झारुहाणं तणाणं ओसहीणं हरियाणं मूलाणं जाव बीयाणं आयाणं कायाणं जाव कुरवाणं कुराणं] उदगाणं अवगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेंति / ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं। अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खलच्छिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा जाव मक्खायं // 12 / / अहावरं पुरक्खायं णाणा
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy