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________________ 1240 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि णाभस्स रणो पुव्व संगइएणं देवेणं अवरककं गरि साहरिया। तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचर्चाह पंडवेहिं सद्धि अप्पछठे छहि रहेहि अवरकंकं रायहाणि दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए / तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमणाभेणं रण्णा सद्धि संगाम संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव महवाया. इव इठे कंते इहे वियंभइ / तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं वंदइ णमंसइ वं० 2 ता एवं वयासी-गच्छामि गं अहं भंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं मम सरिसपुरिसं पासामि / तए णं मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-जो खलु देवाणप्पिया! एवं भयं वा 3 जण्णं अरहंता वा अरहंतं पासंति चक्कवटी वा चक्कट्टि पासंति बलदेवा वा बलदेवं पासंति वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति / तहवि य णं तुम कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमई मज्झमज्झेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाइं पासिहिसि / तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुब्वयं वंदइ णमंसइ वं० 2 ता हस्थिखधं दुरूहइ 2 ता सिग्घं 2 जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छइ 2 ता कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमई मज्झमझेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाहि धयग्गाइं पासइ 2 ता एवं वयइ-एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तम. पुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयइ-त्ति कटु पंचयण्णं संखं परामुसइ 2 मुहवायपूरियं करेइ / तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्त संखसई आयण्णेइ 2 ता पंचयण जाव पूरियं करेइ / तए णं दोवि वासुदेवा संख सद्दसामायारि करेंति / तए णं से कविले वासुदेवे जेणेव अवरकंका तेणेव उवागच्छइ 2 ता अवरकक रायहाणि संभग्गतोरणं जाव पासइ 2 ता पउमणाभं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! एसा अवरकंका संभग्ग जाव सणि. वइया ? तए णं से पउमणाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खल सामी ! जंबहीवाओ 2 भारहाओ वासाओ इहं हव्वमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुन्भे परिभय अवरकंका जाव सण्णिवाडिया / तए णं से कविले वासुदेवे पउम. णाभस्स अंतिए एयमढं सोच्चा पउमणाभं एवं वयासी-हं भो पउमणामा ! अपत्थियपत्थिया 5 किण्णं तुम ण जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासु. देवस्स विप्पियं करेमाणे ? आसुरुत्ते जाव पउमणाभं णिव्विसयं आणवेइ पउमणाभस्स पुत्तं अवरकंकाए रायहाणीए महया 2 रायाभिसेएणं अभिसिंचइ जाव पडिगए // 130 // तए णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुई मज्झमज्झेणं वीई.
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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