SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णायाधम्मकहाओ अ. 5 1135 सद्धि संपरिवडे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम विहरमाणे जेणेव पुंडरीयपव्वए जावं सिद्धे // 63 // तए गं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कतेहि य पमाणाइक्कतेहि य णिच्चं पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया उज्जला जाव दुरहियासा कंडयदाहपित्तज्जरपरिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था / तए णं से सेलए अग्णया कयाई पुव्वाणुपुचि चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरइ / परिसा णिग्गया मंडुओऽवि णिग्गओ सेलगं अणगारं जाव वंदइ णमंसइ 2 ता पज्जुवासइ / तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अणगारस्स सरीरगं सुक्कं भुक्खं जाव सव्वाबाहं सरोगं पासइ 2 ता एवं बयासी-अहं गं भंते ! तुम्भं अहापवितेहि तेगिच्छिएहिं अहापवत्तेणं ओसहमेसज्जेणं भत्तपाणेणं तिगिच्छं आउंटावेमि / तुम णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह फासुअं एसणिज्जं पीढफलगसेज्जासंथारगं ओगिहिताणं विहरह / तए णं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रणो एयमलैं तहत्ति पडिसुणेइ / तए में से मंडुए सेलगं वंदइ णमंसइ वं० 2 ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए / तए णं से सेलए कल्लं जाव जलते सभंडमत्तोवगरणमायाए पंथगपामोहिं पंचहि अणगार सहि सद्धि सेलंगपुरमणप्पविसइ 2 ता जेणेव मंडुयस्स जाणसाला तेणेव उवागच्छइ 2 ता फासुयं पीढ जाव विहरइ / तए णं से मंडए (राया) तिगिच्छिए सहावेइ 2. त्ता एवं वयासी-तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! सेलगस्स फासुएसणिज्जेणं जाव तेगिच्छं आउट्टेह / तए गं तिगिच्छया मंडएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा सेलगस्स अहापवत्तेहिं ओसहभेसज्जभत्तपाणेहि तिगिच्छं आउटृति मज्जपाणयं च उवदिसंति / तए णं तस्स सेलगस्स अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण य से रोगायंके उवसंते जाए यावि होत्था हठे मल्लसरीरे जाए ववगयरोगायंके / तए णं से सेलए तंसि रोयायंकसि उवसंतसि समाणंसि तसि विपूलंसि असणंसि 4 मज्जपाणए य मच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे ओसण्णे ओसण्णविहारी एवं पासत्थे 2 कुसीले 2 पमत्ते 2 संसते 2 उउबद्धपीढफलगसेज्जासंथारए पमते यावि विहरइ णो
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy