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________________ 956 अनंगपविट्ठसुत्ताणि // 111 // जे भिक्खू अण्णमण्णस्स कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वाणीहरेज वा विसोहेज्ज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइजइ // 11 // जे भिक्खू गामाणुगामं दूइंजमाणे अण्णमग्णस्स सी पदुवारियं करेह करेंतं वा साइजइ // 113 / / जे भिक्खू . . साणुप्पए उच्चारपासवणभूमि साणुप्पए ग पडिलेहेइण पडिलेहतं वा साइज्इ // 114 // जे भिक्खू तओ उच्चारपासवणभूमीओ ण पडिलेहेइ ण पडिलेहतं बां साइज इ / 115 / जे भिक्खू खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ परिहवेंतं वा साइजई // 116 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं अविहीए परिट्टवेह परिहवेंतं वा साइजइ॥११७।। जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिहवेत्ता ण पुंछइ ण पुंछंतं वा साइजइ // 118 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिद्ववेत्ता कटेण वा किलिंचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा पुंडर पुंछतं वा साइजइ // 119 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिवेत्ता णायमइ णायमंतं वा साइजइ // 120 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिहवेत्ता तत्थेव आयमइ आयमंतं वा साइजइ // 121 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिवेत्ता अइ दूरे आयमह आयमंतं वा साइजइ // 122 // जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिढुवेत्ता परं तिण्हं णावापूराणं आयमइ आयमंतं वा साइजइ / 123 / जे मिक्खू अपरिहारिएण परिहारियं वएजा-एहि अज्जो ! तुमंच अहं च एगओ असणं वा 4 पडिगाहिता तओ पच्छा पत्तेयं 2 भोक्खामो वा पाहामो बा, जे तं एवं वयइ क्यंतं वा साइजह / तं सेवमाणे आवजह' मासियं परिहारट्ठाणं उन्धाइयं // 124 // णिसी हाउझयणे चउत्थो उद्देसो समत्तो // 4 // पंचमो उद्देसो जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा भालोएज्ज वा पलोएज्ज वा आलोएतं वा पलोएंतं वा साइज्जइ // 1 // जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं बा तुयट्टणं वा चेएइ चेएंतं वा साइज्जइ // 2 // जे मिवखू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा असणं वा 4 आहारेइ आहारेतं वा साइज्जइ // 3 // जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा उच्चारपासवणं परिडवेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ // 4 // ने भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥५॥जे भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं उद्दिसइ उद्दिसेंतं वा साइज्नइ // 6 // ने भिक्खू सचित्तरुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं समुद्दिसइ समुदिसतं वा साइज्जइ // 7 // जे
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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