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________________ अर 574 अनंगपविट्ठसुत्ताणि गाणसागारोवओगे। मइअण्णाणसागारोवओगे, सुयअण्णाणसागारोवओगे, विभंगणाणसागारोवओगे / अणागारोवओगे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ! गोयमा ! चउविहे पण्णते। तंजहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे, अचक्खुदंसणअणागारोवओगे, ओहिदंसणअणागारोवओगे,केवलदंसणअणागारोवओगे य / एवं जीवाणं पि // 658|| णेरइयाणं भंते ! कइविहे उवओगे पण्णत्ते 1 गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते / तंजहा-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य / णेरइयाणं भंते ! सागारोवओगे कइ. विहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते / तंजहा-मइणाणसागारोवओगे, सुयणाणसागारोवओगे, ओहिणाणसागारोवओगे, मइभण्णाणसागारोवओगे, सुयअण्णाणमागारोवओगे, विभंगणाणसागारोवओगे। णेरइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कइ. विहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते / तनहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे, अचक्खुदंसणअणागारोवओगे, ओहिदंसणअणागारोवओगे, एवं जाव थणियकुमाराणं / पुद विकाइयाणं पुच्छा / गोयमा! दुविहे उवओगे पण्णत्ते / तंगहा-सागारोवभोगे अणागारोवओगे य। पुढविकाइयाण. सागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-महअण्णाणसागारोवओगे, सुयअण्णाणसागारोवओगे य / पुढविकाइयाण० अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! एगे अचखुदंसणअणागारोवओगे पण्णत्ते, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं / बेइंदियाणं पुच्छा / गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते। तंजहा-सागारोवओगे अणागारोवओगे य / बेइंदियाणं भंते ! सागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! चउन्विहे पण्णत्ते। तंजहा-आभिणिबोहियणाण०, सुयणाण., मइअण्णाण०, सुयअण्णाणसागारोवओगे। बेइंदियाणं भंते ! अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे अचक्खुदसणअणागारोवओगे, एवं तेइंदियाण वि / चउरिंदियाण वि एवं चेव, णवरं अणा. गारोवओगे, दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे, अचक्खुदंसणअणागारोवओगे / पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा णेरइयाणं / मणुस्साणं जहा ओहिए उवओगे भणियं तहेव भाणियव् / वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं नहा णेरइयाणं // 659 // जीवा णं भंते ! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ! गोयमा! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि / से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'जीवा सागा- . रोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि' 1 गोयमा ! जेणं जीवा आभिणिबोहियणाणसुयणाणोहिणाणमणपजवणाणकेवलणाणमइअण्णाणसुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता तेणं
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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