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________________ 562 अनंगपविट्ठसुत्ताणि अट्ठविहबंधए य छविहबंधए य 6, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधए य छविहबंधगा य 7, अहवा सत्तविहबंधगा य अढविहबंधगा य छविहबंधए य 8; अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य 9, एवं एए णव भंगा। सेसा वाणमंतराइया जाव वेमाणिया जहा णेरइया सत्तविहाइबंधगा भणिया तहा भाणियव्वा / एवं जहा णाणावरणं बंधमाणा जहिं भणिया दंसणावरणं पि बंधमाणा तहिं जीवाइया एगत्तपोहत्तएहिं भाणियव्वा // 634 // वेयणिज० बंधमाणे जीवे कर कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा, एवं मणूसे वि / सेसा णारगाइया सत्तविहबंधगा वा अट्ठविहबंधगा वा जाव वेमाणिए / जीवा णं भंते ! वेयणिजंकम्मं पुच्छा। गोयमा! सव्वे वि ताव होना सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधए य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य, अवसेसा णारगाइया जाव वेमाणिया जाओ णाणावरणं बंधमाणा बंधंति ताहि भाणियव्वा / गबरं मणूमा णं भंते ! वेयणिजं कम्मं बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य 1, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य 2, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य 3, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधए य 4, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य 5, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य 6, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छविहबंधगा य 7, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविहबंधए य 8, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविहबंधगा य 9, एवं एए णव भंगा भाणियव्वा // 635 / / मोहणिज० बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! जीवेगिदियवजो तियभंगो। जीवेगिंदिया सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहवंधगा वि / जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! णियमा अट्ठ, एवं णेरइए जाव वेमाणिए, एवं पुहत्तेण वि / णामगोयंतराइयं० बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! जाओ गाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे बधइ ताहिँ भाणियव्वो, एवं णेरइए वि जाव वेमाणिए, एवं पुहुत्तेण वि भाणियव्वं // 636 // पण्णवणाए भगवईए चउवीसइमं कम्मबंधपयं समत्तं॥
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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