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________________ पष्णवणासुत्तं प० 22 545 बंधगा य अबंधगा य 8, एवं एए अट्ट भंगा, सव्वे वि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति / एवं मणूसाण वि एए चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा, एवं मुसावाय विरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूसस्स य / मिच्छादंसणस्ल्लविरए णं भंते ! जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छविहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा। मिच्छादंसणसल्लविरए णं भंते ! णेरईए कह कम्मपगडीओ बंधा ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए / मणूसे जहा जीवे / वाणमंतरजोइसियवेमाणिए जहा गैरइए / मिच्छादसणसलविरया गं भंते ! जीवा कह कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! ते चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा / मिच्छादसणसलविरया गं भंते ! णेरइया कइ कम्मपगडीओ बंधति ! गोयमा ! सव्वे वि ताव होज सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एवं जाव वेमाणिया, णवरं मणूसाणं जहा जीवाणं // 595 / / पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कजद्द जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजइ ? गोयमा ! पाणाइवायविरयस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कजइ, सिय णो कजइ / पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कजइ ? गोयमा ! णो इणढे समंट्टे / पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कजइ ? गोयमा! सिय कजइ, सिय णो कजह / पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अपच्चक्खाणवत्तिया किरिया क.जइ ? गोयमा! जो इणटे समटे / मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा / गोयमा ! णो इणढे समढे / एवं पाणाइवायविरयस्स मणूसस्स वि, एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य / मिच्छादसण सल्लविरयस्स गं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कजइ जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कजइ ? गोयमा ! मिच्छादंसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कजई, सिय णो कजई, एवं जाव अपञ्चक्खाणकिरिया। मिच्छादसणवत्तिया किरिया ण कजइ / मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जेरइयस्स किं आरंभिया किरिया कजइ जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कजइ ? गोयमा! आरंभिया किरिया कजइ जाव अपच्चक्खाणकिरिया वि कजह, मिच्छादसणवत्तिया किरिया णो कजह / एवं जाव थणियकुमारस्स / मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा / गोयमा ! आरंभिया किरिया कजह जाव
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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