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________________ 34 अनंगपविट्ठसुत्ताणि सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं. पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि अण्णया कयाइ तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धी वेउञ्चियलद्धी ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा, तए णं से अम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ, से तेणद्वेमं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ / पहू णं भंते!अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाण अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?णो इणट्टे समठे, गोयमा अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी ण वुच्चइ अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावजीवाए जाव परिग्गहे णवरं सव्वे मेहणे पच्चक्खाए जावजीवाए, अम्मडस्स णं णो कम्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तपि जलं सयराहं उत्तरित्तए णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं, अम्मडस्स णं णो कप्पइ' सगडं वा एवं चेव भाणियव्वं जाव णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इ वा अज्झोयरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिच्चे ई वा अणिसिढे इ वा अभिहडे इ वा ठइत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुभिक्खभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स ण परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स चउविहे अणत्थदंडे पच्चक्खाए जावजीवाए,तंजहा-अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए सेऽविय वहमाणए णो चेव णं अवहमाणए जाव सेऽविय पूए णो चेव णं अपरिपूए सेऽविय सावजेत्तिकाउ णो चेव णं अणवजे सेऽविय जीवा इतिकटु णो चेव णं अजीवा सेऽविय दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे सेऽविय दंतहत्थपायचरुचमसपक्खालणयाए पिबित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए, अम्मडस्स कप्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽविय वहमाणे जाव दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे सेऽविय सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणयाए पिबित्तए वा, अम्मडस्स
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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