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________________ 400 अनंगपविट्ठसुत्ताणि खिजगुणहीणे वा / अह अब्भहिए असंखिजभागमभहिए वा संखिजभागमभहिए वा संखिजगुणमब्भहिए वा असंखिजगुणमब्भहिए वा / कालचण्णपजवेहिं सिय हीणे सिय तुल्ले सिय मब्भहिए / जइ हीणे अणंतभागहीणे वा असंखेजभांगहीणे वा संखेजभागहीणे वा संखेजगुणहीणे वा असंखेजगुणहीणे वा अणंतगुणहीणे वा / अह अब्भहिए अणंतभागमभहिए वा असंखेजभागमब्महिए संखेजभागममहिए वा संखेजगुणमब्भहिए वा असंखेजगुणमब्भहिए वा अणंतगुणमन्महिए वा णीलवण्णपजवेहिं लोहियवण्णपजवेहिं हालिद्दवण्णपजवेहिं सुकिल्लवण्णपजवेहिं छट्ठाणवडिए / सुन्भिगंधपजवेहिं दुब्भिगंधपजवेहि य छट्ठाणवड़िए। तित्तरसपजवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपजवेहिं अंबिलरसपजवेहिं महुररसपजवेहिं छहाणवडिए / कक्खडफासपजवेहिं मउयफासपजवेहिं गझयफासपजवेहिं लहुयफासपजवेहिं सीयफासपजवेहिं उसिणफासपजवेहिं णिद्धफासपजवेहि लुक्खफासप्रजवेहिं छटाणवडिए / आमिणिबोहियणाणपजवेहिं सुयणाणपजवेहिं ओहिणाणपजवेहिं महअण्णाणपजवेहिं सुयअण्णाणपजवेहिं विभंगणाणपजवेहिं चक्खुदंसणपजवेहिं अचक्खुदंसणपजवेहिं ओहिदंसणपजवेहिं छट्ठाणवडिए, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'णेरइयाणं णो संखेजा, णो असंखेजा, अणंता पजवा पण्णत्ता' // ,248 // असुरकुमाराणं भंते ! केवइया पजवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पजवा पण्णत्ता। से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'असुरकुमाराणं अणंता पजवा पण्णत्ता' 1 गोयमा ! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपजवेहि छट्ठाणवडिए, एवं णीलवण्णपजवेहिं लोहियवण्णपजवेहिं हालिद्दवण्णपजवेहिं सुक्किलवण्णपज्जवेहि, सुन्भिगंधपजवेहि, दुब्भिगंधपजवेहिं, तित्तरसपजवेहिं कडुयरसपजवेहिं कसायरसपजवेहिं अंबिलरसपजवेहिं महुर. रसपजवेहि, कक्खडफासपजवेहिं मउयफासपजवेहिं गरुयफासपजवेहिं लहुयफासपनवेहिं सीयफासपजवेहिं उसिणफासपजवेहिं गिद्ध फासपजवेहिं लुक्खफासपजवेहि आभिणिबोहियणाणपजवेहिं सुयणाणपजवेहिं ओहिणाणपजवेहिं मइअण्णाणपजवेहिं मुयअण्णाणपजवेहिं विभंगणाणपजवेहिं चक्खुदंसणपजवेहिं अचक्खुदंसणपजवेहिं ओहिदंसणपजवेहिं छट्ठाणवडिए, से एएटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- असुरकुमाराणं अणंता पजवा पण्णत्ता' / एवं जहा जेरइया, जहा असुरकुमारा.तहा गागकुमारा वि माव थणियकुमारा // 249 // पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया पजवा पण्णत्ता ?
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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