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________________ जीवाजीवाभिगमे प०३ 193 पत्ताई सव्वरयणामयाई अच्छाइं सण्हाई लण्हाइं घटाई मट्ठाइं णीरयाई णिम्मलाई णिप्पकाई णिकंकडच्छायाइं सप्पभाई समरीयाई सउजोयाइं पासाइयाई दरिसणिजाई अभिल्वाइं पडिरूवाई महया 2 वासिक्कच्छत्तसमयाई पण्णत्ताइं समणाउसो !, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया 2 // पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासया असासया ? गोयमा ! सिय सासया सिय असासया // से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया वण्णपजवेहि गंधपजवेहिं रसपजवेहिं फासपजवेहिं असासया, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइसिय सासया सिय असासया॥ पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सइ भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेइया // 125 // तीसे णं जगईए उप्पिं बाहिं पउमवरवेइयाए एत्थणं एगे महं वणसंडे पण्णत्ते देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं जगईसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे जाव अणेगसगडरहजाणजुग्गपरिमोयणे सुरम्मे पासाईए सण्हे लण्हे घटे मढे णीरए णिप्पंके णिम्मले णिकंकडच्छाए सप्पभे समिरीए सउज्जोए पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे // तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए-आलिंगपुखरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा सरतलेइ वा करयलेइ वा आयंसमंडलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा उरभचम्मेइ वा उसभचम्मेइ वा वराहचम्मेइ वा सीहचम्मेइ वा वग्घचम्मेइ वा विगचम्मेह वा दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवियए आवडपच्चावडसेटीपसेढीसोत्थियसोवत्थियपूसमाणवद्धमाणमच्छंडग-मगरंडग-जारमार-फुल्लावलि पउमपत्तसागरतरंग-वासंतिलय-पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं समिरीएहिं सउजोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोहिए तंजहा-किण्हेहिं जाव सुकिल्लेहिं / तत्थ णं जे ते किण्हा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-जीमूएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कजलेइ वा मसीइ वा गुलियाइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपत्तगयसारेइ वा जंबुफलेइ वा अद्दारिट्टेइ वा परपुट्ठएई वा गएई वा गयकलभेइ वा कण्हसप्पेइ वा कण्हकेसरेइ वा आगासथिगगलेइ वा कण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा कण्हबंधुजीवएइ वा, भवे एयारूवे सिया ?, गोयमा ! णो इणढे समढे, तेसि णं कण्हाणं तणाणंमणीण य इत्तो इतराए
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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