________________ 16 द्वितीय उद्देशकः-- ___- (1) प्राधाकर्मी आहार को मुनि मृत्यु दण्ड तक भी स्वीकार नहीं करें। किन्तु शक्य हो तो आग्रह करने वाले दाता को धर्म समझा। (2) असमान संयमी भिक्षुत्रों के साथ प्राहार आदान-प्रदान व्यवहार न करे किन्तु समान संयमी भिक्षुत्रों के साथ आहारव्यवहार करें। तृतीय उद्देशकः-- (1) मध्यम वय में भी कई मुमुक्षु उन्नत संयमी बन जाते है एवं शुद्ध पाराधन करते हैं, वे महा निर्ग्रन्थ हैं। (2) शरीर के ममत्व का त्याग कर वे अनेक गुण सम्पन्न हो जाते हैं। (3) असा सर्दी से काँपते हुए उन्हें देखकर कोई अग्नि से नापने को प्रेरित करे तो भी मुनि मन से भी वांछा न करें। चतुर्थ उद्देशकः 1. मुनि तीन वस्त्र (चद्दर).धारण की विशेष प्रतिज्ञा (अाठ मास तक) धारण करें वह वस्त्रों को धोवें नहीं / जीर्ण हो जाए तो नया लेवे नहीं किन्तु जीर्ण को परठ दे। सभी जीर्ण हो जाए तो निर्वस्त्र हो जावें / (2) भिक्षु कभी स्त्री परीषह से पराजित हो जाए तो अन्त में स्वयं ही मृत्यु स्वीकार कर लें किन्तु ब्रह्मचर्य व्रत भंग नहीं करे / व्रत रक्षा हेतु उसका स्वतः वेहानस एवं गृद्ध स्पृष्ट मरण से मरना भी कल्याण कारी है / पंचम उद्देशकः-- (1) भिक्षु दो वस्त्र धारण (आठ मास तक) की प्रतिज्ञा