________________ 227.] चतुर्थोऽध्यायः / गम्भीराच्छिद्रासंकीर्णवक्रायतस्निग्धतनुताम्रपाणिलेखाः // 27 // - सूक्ष्मयमलीकृताध्याकुलारक्ताङ्गुलिपर्वाणः // 28 // अनामिकापर्वाधिकप्रमान (ण) कनीनिकागुलयः // 26 // अनतिबहुतनुमृदुस्निग्धसुबद्धमूलसमरोमाणः / / 30 / / स्निग्धासंकुचितानुपहतसारच्छवयः / / 31 / / शोतोष्णस्पर्शाव्यकच्छवीव वर्णाः // 32 // स्थिरनिबिडानतिस्थूलान तिकृशमांसाः / / 33 / / जवापुष्पाभिताम्रस्वच्छस्निग्धमधुरचन्दनगन्धिरुधिराः // 34 // मांसोपगूढस्थूलदृढसुशिरास्थिकाः / / 35 / / नागग्रन्थ्यवस्थितनिर्मू ढास्थिसन्धयः // 36 // वज्रवदभेद्यशरीरत्वात्सुसंहननाः // 37 / / चारुसुविभक्ताङ्गप्रत्यङ्गाः / / 38 / / अनुपूर्वोपचितसुपरिमृष्टसुकुमारादीन्न (प्त) स्वच्छशरीराः // 39 // निर्मशकतिलकालपिल्याः // 40 // जरादौर्बल्यकृतापगतवलयः // 41 / / सिंहशय्यानुष्ठाण (न)व्यपगतकायविक्षेपाः // 42 // स्वेदमलानुपक्लिष्टशुचिसौम्यच्छायाः // 43 // ज्वलनमनि(णि) महौषधिशशाङ्कसवितृसमतेजसः // 44 / / महीधरवरगुरुत्वोपेताः // 45 / / ऋतुसुखकोलिन्दिकसुखसंस्पर्षाः / / 46 // मधुरमृदुसुरभिकुसुमचन्दनसमानरोमकूपगन्धाः / / 47 / / अभिनवनीलोत्पलतुल्यसार्वकालिकमुखगन्धाः // 48 // अद्भुतमृदुदीर्घ स्निग्धपिण्डितव्यपगतशब्दनिश्वासाः / / 49 / / अनशनकदन्नाशन(ना) तङ्कात्तु विपरिणामानुपरतधर्मदेशनाभिरप्यसञ्जितस्वरभेदाः // 50 // नातिसंकुचितविदारितरक्तास्याः // 51 / / शुचिसमाचाराः // 52 // देशस्थ त्तप्तविस्पष्टपरिपूर्णव्यञ्जनाः / / 53 / / समन्तप्रासादिकत्वादसेचन कदर्शणा: (नाः) // 54 / / अनतिह्रस्वानतिदीर्घवृत्तोपचितत्रिवलिविभूषितकम्बुग्रीवाः / / 55 / / समप्रमान (ण) दृढावक्रह्रस्वविपुलचिबुकाः // 56 //