________________ सुदा जुदी विषयमा मलेला काव्यो श्रीतीर्थपान्थरजसा विरजीभवन्ति / तीर्थेषु बंभ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति / तीर्थव्ययादिह नराः स्थिरसंपदः स्युः। तीर्थेश्वरार्चनकृतो जगदर्चनीया // 61 // पुत्रने दीक्षा अपावनार कुटुंबने धन्यवाद धन्ना जणणी जणया, धन्ना विय बंधवा सुकयत्था / पव्वज्जाए जुग्गं पुत्तं, परिपालियं जेहिं // 2 // युगलिक तिर्यचो पण देवगति ज पामे छे नरतिरि असंखजीवी, सव्वे नियमेण जति देवेसुं / निअआउअ-समहीणाउएसु, ईसाणअंतेसु // 6 // जिनेश्वर देवोनी कल्याणक भूमिओ-वांदवी अने मोटी आवक थाय तो पण अनार्य क्षेत्रोमां वसवू नहीं / निक्खमण-नाण-निव्वाण-जम्म भूमीओ वंदइ जिणाणं / / नय वि सइ साहुविरहियंमि देसे बहुगुणेवि // 64 // शुकराजाने बावन भव पहेलां बांधेलु कर्म उदयमां आव्यु महोदयमुनिः प्राहः, शुकराजाधुना श्रृणु / इतो भवाद् द्विपञ्चाशत्तमे भूपभवे त्वया // 65 // उद्दाल्य छलतो राज्य, गृहीतं यस्य वेगतः / तेन तेऽस्मिन् भवे राज्यं, जगृहे शुकभूपते ? // 66 // वोतरागना मुनिराजो-ज्योतिष-निमित्त-अक्षर-कौतुक आदेश-भूतिकर्म-करे करावे अनुमोदे नही जोइस-निमित्त-अक्खर-कोऊअ-आएस-भूइकम्मेहिं / "कारणाणुमोअणेहि, साहुस्स तवक्खओ होइ // 67 //