________________ चैत्यवंदनादिविभागः मनुष्याः, खलु ते धन्या, ये त्वां द्रक्ष्यन्त्यहनिशम् / यथासमयमेव त्वां, द्रष्टारः कीदृशा वयम् // 3 // सास्तु तावत्तव सुधा-सनीची धर्मदेशना / त्वदर्शनमपि श्रेयो, विश्राणयति जन्मिनाम् // 4 // न कश्चिदुपमापात्रं, भवतो भवतारकः / ब्रूमः त्वत्तुल्यमेव त्वां, यदि ते तर्हि का कथा // 5 // नास्मि वक्तुमलं नाथ !, सद्भूतानपि ते गुणान् / स्वयंभूरमणाम्भोधे-ौतुमम्भांसि कः क्षमः // 6 // कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि-म-प्रणीतं चैत्यवन्दनम् नमोऽर्हते भगवते, स्वयंबुद्धाय वेधसे / तीर्थकरायादिकृते, पुरुषेषूत्तमाय ते // 1 // नमो लोकप्रदीपाय, लोकप्रद्योतकारिणे। लोकोत्तमाय लोकाधी-शाय लोकहिताय ते // 2 // नमस्ते पुरुषवर-पुण्डरीकाय शंभवे / पुरुषसिंहाय पुरू-बैकगन्धद्विपाय ते // 3 // चक्षुर्दायाभयदाय-बोधिदायाध्वदायिने / धर्मदाय धर्मदेष्ट्रे, नमः शरणदायिने // 4 // धर्मसारथये धर्म-नेत्रे धर्मकचक्रिणे। व्यावृत्तच्छमने सम्यग्-ज्ञानदर्शन धारिणे // 5 //