SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4.64 सुभाषितसूक्तरत्नमाला धर्मस्य दानं च दया दमश्च, मोक्षस्य सर्वोपरमः क्रियाश्च // 2 // धर्मायौँ तावनौँ हि, कामान् जनयतोऽत्र यौ। तन्नात्र धर्मार्थों चाथ, अौँ कामफलौ मतौ // 3 // किन्तु मोक्षफलावेव, पुरुषार्थाविमौ मतौ। अलौकिक मोक्षोऽयं, मुनिलोकविलोकनात् // 4 // जन्मादिवाधाहीनश्च सवोत्तमसुखप्रदः // श्लोकाः चार पुरषार्थनुं स्वरूप तत्त्वरत्नत्रयाधारः, सर्वभूतहितप्रदः। चारित्रलक्षणो धर्मः, कस्य शर्मकरो न हि // 5 // हिंसास्तेयपरद्रोह-मोहक्लेशविवर्जितः / सप्तक्षेत्रोपयोगी स्या-दर्थोऽनर्थविनाशकः // 6 // जातिस्वभावगुणभृल्लुप्तान्यकरणः क्षणम् / धर्मार्थाबाधकः कामो, दम्पत्योर्भावबन्धनम् / / 7 // कषायदोषापगतः, साम्यवान् जितमानसः / शुक्लध्यानमयः स्वात्मा-ऽध्यक्षो मोक्ष उदीरितः॥८॥ 171 विविधविषयविचारणासूक्तानि ___ अमोघ वस्तुओ अमोघा वासरे विद्यु-दमोघं निशि गर्जितम् / अमोघा चोत्तमा वाणी, अमोघं देवदर्शनम् // 1 //
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy