________________ 452 सुभाषितसूक्तरत्नमाला. जे तिथिमां सूर्य उगे ते दिवसे तेज तिथि गणाय आहुरपि चाउम्मासिअ वरिसे, पक्खिय पंचट्ठमीमु नायव्वा / ताओ तिहिओ जासिं, उदेइ सूरो न अन्नाओ // 1 // जे तिथिमां सूर्य उग्यो होय तेज तिथिमां पूजादि कार्य करवां पूआ पच्चखाणं, पडिक्कमणं तह्रय नियमगहणं च / जीए उदेइ सूरो, तीइ तिहीए उ काथव्वं / / 2 / / बीजीमां करे तो आज्ञाभंगादि दोषो लागे उदयंमि जा तिही सा, पमाणमि अ रीइ कीरमाणीए / आणाभंगणवस्था-मिच्छत्तं विराहणं पावे // 3 // तथा पाराशरस्मृत्यादौआदित्योदयवेलायां, या स्तोकापि तिथिर्भवेत् / सा संपूर्णेऽति मन्तव्या, प्रभूता नोदयं विना / / 4 / / छन्हं तिहीणमझे, का तिही अज्जवासरे / किं वा कल्लाणगं अज्ज, लोगनाहाण संतियं / / 5 / / यदुक्तं पंचमांगे-- __अट्ठमी--चउदसी-पुन्निमा य, तहमावसा हवइ पव्वं / मासम्मि पचछक्कं, तिम्निय पवाई पक्खम्मि // 6 //