________________ કકર सुभाषितसूक्तरत्नमाला पायमिह कूरकम्मा, भवसिद्धिया वि दाहिणिल्लेसु / नेरइयतिरियमणुआ-मुराइठाणेसु गच्छन्ति // 8 // नारकीना आयुष्यना बंधनां चार कारणो महारंभयाए महापरिग्गहियाए कुणिमाहारेण / पंचिंदिअवहेणं जीवा निरयाउअं निअच्छंति // 9 // मनुष्यना आयुष्यना चार कारणो चउहि ठाणेहिं जीवा मणुस्साउअं निबंधति तं जहा पगति भद्दयाए पगति विणीअयाए साणुसयाए अमच्छरियाए॥ तापसो चरग पंचिन्द्रियतिर्यचो अने श्रावकोनी उत्कृष्ट गति तावस जा जोइसिया, चरगपरिवाय बंभलोगो जा। जा सहसारो पंचिंदिय-तिरिआ सड्ढा जाइ अच्चुयं जाव / 157 श्रीयतनासूक्तानि जयणा धर्मनो सार छे जयणा य पयत्तेण. कायव्वा एत्थ सव्वजोगेसु / जयणा उ धम्मसारो, जं भणिया वीयरायेहि // 1 // जयणा उ धम्मजणणी, जयणा धम्मस्स पालणी चेव / तववुढिकरी जयणा, एगंत सुहावहा जयणा // 2 // जयणाए वट्टमाणो, जीवो सम्मत्तनाणचरणाणं / सद्धाबोहासेवण-भावेणाराहगो भणिओ // 3 //