________________ 422 सुभाषितसूक्तरत्नमाला गुणोनुं बहुमान .. संतगुणकित्तणेण वि, पुरिसा लज्जन्ति जे महासत्ता। इयरा पुण आलियपसं-सणे वि हियये न मायंति // 4 // * महाफलं खलु तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोत्तस्स वि सवणाए॥ जह गोअमाइआणं, नामाइ तिन्नि हुन्ति पावहरा / अंगारमदगस्स य, नामाइ तिन्नि पावयरा // 5 // विरला जानंति गुणा, विरला पालंति निद्धणा नेहा / विरला परकज्जकरा, परदुक्खे दुक्खिया विरला // 6 // 122. गीतार्थसूक्तानि प्रथम सम्यग्ज्ञान प्राप्तकरोने पछीज उपदेश आपवो. पढम सम्मं नाणं, पच्छा करणं परोवएसो य / अमुणिय जहट्ठियत्था, परं अप्पाणं च नासंति / / 1 // [प्रथमं सम्यग्ज्ञानं, पश्चात्करणं परोपदेशश्च / अज्ञातयथास्थितार्थाः, परमात्मानं च नाशयन्ति // 2 // गीतार्थ अने गीतार्थनी निश्राविनानो विहार नथी गीअत्थो अ विहारो, बिइओ गीयत्थमीसिओ भणिओ। एत्तो तइयविहारो, नाणुग्णाओ जिणवरेहिं // 3 //