________________ 378 सुभाषितसूक्तरत्नमाला भावाचार्य तीर्थंकर समान छे तित्थयरसमा भावा-यरिया भणिया महाणिसीहम्मिः / तित्थयरसमो सूरि, सम्मं जो जिणमयं पयासेइ // 3 // वीतरागदेवोनी आशानो भंग महापाप छे जं केवलिणा भणियं, केवलनाणेण तत्तओ नाउं / तस्सऽन्नहाविधाने, आणाभंगो तहा पावं (पावो)॥४॥ . पंचमहव्ययभेयो, छक्कायवहो अ तेणऽणुन्नाओ / मुहसीलविअत्ताणं, कहेइ जो पवयणरहस्सं // 5 // भवसयसहस्स लद्धं, जिणवयणं भावउ जहं तस्स / जस्स न जायं दुक्खं, तस्स न दुक्खं परे दुहिए // 6 // संसारविरत्तस्स उ, आणाभंगे महब्भय होइ / गारवरसिअस्स पुणो, जिणआणाभंजणं कीला // 7 // आणाए अवस॒तं, जो उवव्हेइ मोहदोसेण / सो आणा-अणवत्थ-मिच्छत्त-विराहणं पावे // 8 // जोइस-निमित्त-अक्खर-कोउआएस-भूइकम्मेहिं / करणाणुमोअणाहि अ साहुस्स तवक्खओ होइ // 9 // ज्योति-निमित्ताक्षर-मन्त्र-कार्मणप्रतिक्रिया-कौतुक-शान्तिकादिकम् / प्रयुञ्जते ये यतयः स्वजीवने, ते दुर्गतिं यान्ति विराधितव्रताः // 10 //