________________ 350 सुभाषितसूक्तरत्नमाला छज्जीवणिया पढमे, बीए चरिमे य सव्वदयाई। सेसा महव्यया खलु, तदेकदेसेण दवेणं // 2 // "छज्जीवणिया पढमे = दवओणं पाणाइवाए छम जीवनिकायेसु / " “बीए चरिमे य सव्यदबाई = दनओणं मुसावाए सव्वदम्वेसु, दव्वओणं परिग्गहे सचित्ताचित्तमीसेसु दव्वेसु / " चारित्र धर्म सर्व भवोना पापनो नाशक दीक्षा क्षणमपि प्रायः, सम्यकपरिणता हृदि / पुंसां क्षपयति क्षिप्रं, पापं नैकभवार्जितम् // 3 // अत एव क्षणेनापि, प्राय यः प्रबजितो यतिः। सामान्यमपि तं सार्व-भौमसाधुनमस्यति // 4 // आबालभावओ जे, गुरुपायमूलाउ लद्धसिक्खदुगा / णिच्छयववहारविऊ, ते वट्टावंति तित्थठिइं // 5 // वालकालमा ज दीक्षा लेनारा आत्माओ विद्वान थाय छे. आचार्य थाय छे. वीतरागदेवोनु तीर्थ टकावी राखे छे. परंपरा चालु रहे छे. अभिनंदनीय बालदीक्षा धन्ना हु बालमुणिणो, कुमारवासंमि जे पव्वइया / निजिणिऊण अणंगं, दुहावहं सव्वलोआणं // 6 // ते धन्ना सुप्पुरिसा, पवित्तिअंतेहिं धरणिवलयमिणं / निम्महियमोहपसरा, जिणदिक्खं जे पवति // 7 //