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________________ अनशनानशनिनां सूक्तानि 313 एक पुरुषथी एकवार भोगवायेली स्त्रीनी योनिमां जीवोनी उत्पत्ति पंचिंदिया मणुस्सा, एगनरभुत्तनारीमझमि / उक्कोसा नवलक्खा, जायंति एगहेलाए // 4 // नवलक्खाणं मज्झे, जावइ इक्कस्स दोहे व समत्ती। सेसा पुण एमेव य, विलयं वच्चंति तत्थेव // 5 // असंखया थीनरमेहुणाओ, मुच्छंति पंचिंदियमणुस्साओ। नीसेस अंगाण विभत्ति चंगे, भणइ जिणो पन्नवणा उवंगे॥६ काचा के पाका मांसमां सतत बेइन्द्रिय जीवोनी उत्पत्ति आमासु य पक्कासु य, विपच्चमाणासु मंसपेसीसु / सययं वि उववाओ, भणिओ निगोयजीवाणं // 7 // निगोदशब्देन द्वीन्द्रिया जीवा अपि कथ्यन्ते / तत्र द्वीन्द्रियजीवानामेवोत्पत्तिर्भवति नान्येषामिति भावः / . गर्भनी स्थिति अने गर्भनी कायस्थिति गम्भटिइ माणुस्सीणुक्किट्ठा, होइ वरिसबारसगं / गब्भस्स य कायट्टिई, नराण चउवीसवरिसाई // 8 // रिउसमयण्हायनारी, नरोवभोगेण गम्भसम्भूई / उक्कोसेण नवसय-नरभुत्तत्थीइ एगसुश्री // 9 // सुयलक्स्वपुहुत्तं होइ, एगनरभुत्तनारीगभंमि / उक्कोसेण नवसय-नरभुत्तत्थीइ एगसुओ // 10 //
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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