________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला पतिना गुणावगुणनी विचारणा गुणवान् गुणरागी चा-वियुक्तश्च सुधासमः। विपरीतः पुन यो, दयितः कालकूटवत् // 37 // " विषमिश्रधातुल्यः, सुखदुःखमयः प्रियः // श्लोकाः" 140 अशने विषपरीक्षासूक्तन द्रष्ट्वान्नं सविपं चकोरविहगो धत्ते विरागं देशो, हंसः कूजति सारिका च वमति क्रोशत्यजसं शुकः / विष्टां मुञ्चति मर्कटः परभृतः प्राप्नोति मृत्यु क्षणात् , क्रौञ्चो मायति हर्षवांश्च नकुलः ग्रीतिं च धत्ते ठिकः // 1 // 141 ईर्यापथिकीविषयकसूक्तानि देवचणं पवित्तं करेइ जह काउं वझतणुसुद्धि / भावच्चणं पि हुज्जा, वह इरियाए विमलचित्ते // 1 // हत्थसयादागंतुं च मुहुत्तगं जहिं चिठे। . पंथे वा भत्ते वा, न संतरणे पडिक्कमइ // 2 // पडिलेहिउँ पमज्जिय, भत्तं पाणं च वोसिरेऊण / वसहीकयवरमेव तु, नियमेण पडिक्कमे साह // 3 // उच्चारं पासवणं, भूमीए वोसिरित्तु उवउत्तो / वोसिरिऊण य तत्तो, इरियावहियं पडिक्कमइ // 4 // मित्ति मिउमद्दवत्ते, छत्तिय दोसाण छायणे होइ मित्ति य मेराइठिओ, दुत्ति दुगुंछामि अप्पाणं // 5 //