________________ 300 सुभाषितसूक्तरत्नमाला सुकुमालकोमलभद्दलया, तुम्हे रत्तिं हिंडणसीलणया। अम्ह पओसा तुम्ह नत्थि, भयं दीहपिट्ठाओ तुम्ह भयं // 3 // 129 केन कर्मोदयेन परीषहानामुदय इति प्रतिपादकसूक्तानि दंसणमोहे दंसणपरीसहो, पन्ना अन्नाण पढममि / चरिमेऽलाभपरीसह, सत्तेव चरित्तमोहंमि // 1 // अक्कोस अरइ इत्थी, निसीहिया अचेलजायणा चेव / सक्कारपुरकारे, एक्कारस वेयणिज्जंमि // 2 // पंचेव आणुपुव्वी, चरिया सेज्जा तहेव जल्ले अ। वहरोगतणफासा, सेसेसुं नत्थि अवयारो // 3 // 130 केवलिसमुद्घातसूक्तानि दण्डं प्रथमे समये, कपाटमथ चोत्तरे तथा समये / मन्थानमथ तृतीये, लोकव्यापि चतुर्थे तु // 1 // संहरति पश्चमे, त्व-न्तराणि मन्थानमथ पुनः षष्ठे। सप्तमके तु कपाटं, संहरति ततोऽष्टमे दण्डम् // 2 // समुद्घातस्य तस्याये, चाष्टमे समये मुनिः। औदारिकाङ्गयोगः स्याद्, द्विषट्सप्तमकेषु तु // 3 // मिश्रौदारिकयोगी स्यात्, तृतीयायेषु तु त्रिषु / समयष्वेककर्माङ्ग-धरोऽनाहारकश्च सः॥४॥