________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला श्रीजिनेश्वर देवनी पूजा इच्छित फळ आपनारी छे. उवसमइ दुरिअवग्गं, हरइ दुहं कुणड सयलसुक्खाई। चिंताईयं वि फलं, साहइ पूआ जिणिंदाणं // 6 // श्रीतीर्थंकर देवने वंदन, फल तित्थयरवन्दणत्थं, चलिओ भावेण पावए सग्गं / * जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणियसुरत्तं // 7 // श्रीजिनेश्वर देवनी भक्तिनु महात्म्य इक्कावि सा समत्था, जिणभत्ती दुग्गई निवारे / दुल्लहाई लहावेउं, आसिद्धिपरंपरसुहाई // 8 // चिरसंचियपावपणा-सणीइ भवसयसहस्समहणीए / चउव्वीसजिणविणिग्गय-कहाइ वोलंतु मे दिअहा // 9 // द्रव्य अने भाव पूजा दुविहा जिणिंदपूआ, दव्वे भावे अ इत्थ बोधव्वा / दव्वेहिं जिणपूआ, जिणआणापालणं भावे // 10 // क्रोधादिकनो त्याग करी एकचित्ते पूजा करवी क्रोध-मानविनिर्मुक्तो, राग-द्वेषविवर्जितः। एकाग्रमानसो भूत्वा, जिनेन्द्रमभिपूजयेत् // 11 // पांच प्रकारनी भक्ति पुष्पाद्यर्चा तदाज्ञा च तद्रव्यपरिरक्षणम् / उत्सवास्तीर्थयात्रा च, भक्तिः पञ्चविधा जिने // 12 // .