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________________ मात्मनिन्दासूक्तानि ममैवाऽयं दोषो यदपरभवे नार्जितमहो!, शुभं यस्माल्लोको भवति मयि कुप्रीतिहृदयः। अपापस्यैवं में कथमपरथा मत्सरमयं, जनो याति यार्थ प्रतिविमुखतामेत्य सहसा // 13 // पंच पंचाऽभामा उ. मुतमि जे पसिआ / ते नावापाटार, किन्तु ते उवलक्षणं / / 14 // नतं अरी बलहिला करोति, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा / से नाहिई मामु पत्ते, पच्छाणुताण दयाविहुणो // 15 // यत्सर्वजन्ममि पर त्रिदोपैविविध विधा / त्रिलोक्यां का याकारि, तन्निन्द निजदुष्कृतम् // 16 // आत्मनिदान यं, न भून ल भविष्यति / परनिन्दास पयं. न भूतं न भविष्यति // 17 // परनिन्दाममा बदन्ति मुनयः खलु / इहलोक पराभूति पत्र नरके गतिः // 18 // यः स्वयं स्वकिलाचारः, नवाचारान् प्रणामयेत् / तस्यात्मानभिजस्य, नरकऽपि गतिने हि / / 19 / / मोडस्य तदपि विलसितं, अभिमानो यः परप्रीणितायाः। तत तमसोऽपि तमिस्र, यात्मस्तुतिरात्मना क्रियते // 20 //
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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