________________ सुभाषितसूतरत्नमाला योनि मुञ्चति याति वा न कतमा संवेदयन् वेदना, यावत्सर्वतमोपहं न लमते सम्यक्त्वरत्नं पदम् // 4 // यस्य निखिलाश्च दोषा, न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते / ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै // 5 // भवबीजाडुरजनना, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य / ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै // 6 // प्रत्यक्षतो न भगवानृषभो न विष्णुरालोक्यते न च हरो न हिरण्यगर्भः / तेषां स्वरूपगुणमागमसंप्रभावात् , ज्ञात्वा विचारयत कोऽत्र परापवादः॥७॥ मित्रा तारा बला दीपा, स्थिरा कान्ता प्रभा परा // नामानि योगदृष्टीनां, लक्षणैश्च निबोधत // 8 // तृणगोमयकाष्ठाग्नि-कणदीपप्रभोपमा / रत्नातारार्कचन्द्राभा, सद्दष्टेईष्टिरष्टधा // 9 // दानानि शीलानि तपांसि पूजा, सत्तीर्थयात्रा प्रवरा दया च / सुश्रावकत्वं व्रतधारकत्वं, सम्यक्त्वमूलानि महाफलानि // 10 // बालः पश्यति लिङ्ग, मध्यमबुद्धिर्विचारयति वृत्तम् / भागमतत्त्वं तु सुधी:, परीक्षते सर्वयत्नेन / 11 //