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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | ix जैनधर्म या वास्तुशिल्प के विवरण को पारिभाषिक शब्दों से बोझिल न बनाकर मैंने जैनधर्म तथा चालुक्य, जो एक दूसरे के समांतर चलते हैं और एक दूसरे के पूरक हैं, का इतिहास चित्रित किया है। बहुत सारी नयी तथा ताज़ा जानकारी इस जैन तथा राजनीतिक इतिहास की पुस्तक में जोडी गयी है। विश्वास रखें कि यह संक्षिप्त प्रस्तावना ऐतिहासिक कार्य के केंद्र को ही रेखांकित करती है। ___ महामहिम कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक पाचार्य स्वामी जी लेखक, एक विद्वान संत तथा धर्मवैधानिक साहित्य में सिद्धहस्त श्रवणबेळगोळ आश्रम के श्रद्धेय भट्टारक हैं। विद्वान भट्टारक कला, साहित्य, शिल्पकला तथा संस्कृति के संरक्षक हैं। पूज्य भट्टारक जी ने इससे पहले भी मेरी अनुसंधानात्मक पुस्तकें छापी हैं। इस पुस्तक का महत्व समझकर उन्होंने इसे छापने में खुशी से सहमति दी तथा इसके प्रकाशन के गुणवत्ता पर भी विशेष जोर दिया। कई समितियों तथा आश्रम के कामों में व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने उक्त पुस्तक गहराई से पढ़ी तथा पुस्तक के लिए आशिर्वचन स्वरूप मुझे आशिष दिया। अतः मैं परमपूज्य स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक जी के प्रति अपनी गहन श्रद्धा, भक्ति तथा आदर ज्ञापित करने में हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। - परमपूज्य सिद्धान्त चक्रवर्ती श्वेतपिच्चाचार्य श्री विद्यानंद मुनिराज जी को अपनी पुस्तक समर्पित करने में मुझे धन्यता की अनुभूति हो रही है। शिमोगा में 196263 में मैं पहली बार उनसे मिला वह स्मृति आज भी मेरे मनःपटल पर उज्ज्वल * तथा ताजी है। हम दोनों होम्बुज मठ से जुडे वर्धमान विद्यार्थी निलयम में कुछ समय साथ रह्या करते थे। पूज्यश्री अपनी दीक्षा ले रहे थे और मैं एक कॉलेज में प्रवक्ता था। हम दोनों रोजं मिलते और दोनों समान रुचि के विषय पर चर्चा करते थे और फिर शाम के समय गंभीर विषयों पर चर्चा करते हुए पैदल घूमने निकल जाया करते थे। स्वामी जी युवा, सुंदर तथा उत्साह से भरे थे। उनका ज्ञान इतना विस्तृत था कि भाषा, संस्कृति तथा धर्म आदि को समा लेता था। शिमोगा के कुलीन तथा उच्च लोग मुझे पुछा करते थे कि, 'स्वामी विवेकानंद की तरह दिखनेवाले ये तेजस्वी स्वामी कौन है?' इस प्रकार शिमोगा में उनका ठहराव छोटा सा ही सही पर शिमोगा शहर के सांस्कृतिक लोकाचार पर अपनी छाप छोड गया तथा मुझे गंभीर विषयों पर अनुसंधान करने के लिए प्रेरित कर गया। पूज्यश्री से बेलगाँव, श्रवणबेळगोळ, धर्मस्थळ तथा नई दिल्ली में मिलने का मुझे पुनः अवसर मिला। सुविख्यात प्रो. पद्मनाभ जैनी तथा क्रिष्टि एन. विलि जी के साथ उनसे मिलने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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