________________ प्रस्तावना बादामी उपनाम वातापी चालुक्यों के अध्ययन पर काफी सारा अनुसंधान हो रहा है और अब तक स्तरीय तथा विपुल अध्ययन भी किया गया है। तथापि, इन सारे अध्ययनों में बादामी चालुक्यों के संदर्भ में विशेषतः जैनधर्म का स्थान भले ही उपेक्षित ना किया गया हो किंतु यह अध्ययन अधूरा, अस्पष्ट रहा है। उसपर समीचीन रूप से विचार नहीं हो पाया है। अबतक, जैनधर्म में चालुक्यों के योगदान पर विशेष ध्यान केंद्रित नहीं किया गया। व्यवस्थित अध्ययन के अभाव का कारण पर्याप्त सामग्री की कमी नहीं है अपितु शिलालेखिय, शिल्पगत तथा साहित्यिक प्रमाण प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं। वास्तव में जैन शिल्पकला तथा संस्कृति के कुछ घटक इन्हीं पूर्वी चालुक्यों के नाभी केंद्र में स्थिर हुए हैं जिसने कला की प्रामाणिकता की मुहर तथा निग्रंथो के पंथ को वहन कर उसे शानदार तथा तेजी से संवर्धित घनिभूत किया है। शाही चालुक्यों को साम्राज्य के साथ निग्रंथो के स्थान को अद्यतन बनाना तथा चालुक्यों के इतिहास में जैनधर्म को उचित स्थान 445433 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org