________________ 180 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य तो वह यह है कि उन्होंने पूर्वद-पळगन्नड अर्थात प्राचीन कन्नड की भाषा तथा साहित्य को जीवनदान दिया। इस युग की सामाजिक- सांस्कृतिक संरचना, एक विशाल सम्राज्य के प्रादेशिक स्तर के छोटे राजाओं की शासनप्रणाली, तथा उनके सेना बल के साथ स्थानीय मातहत आदेश के योद्धा-प्रमुखों के द्वारा चिह्नित की जाती है। .. वातापी चालुक्यों ने लोकप्रिय परंपरा के स्थानीय तथा बुनियादी तत्वों की सुरक्षा तथा संरक्षण की जिम्मेदारी उठाने में अपना पूरा सहयोग दिया। उन्होंने तालाब बनवाने तथा गोदान की पद्धति को बहुत ही लोकप्रिय बनाया। शिग्गाव के पुरालेखों में इस काल में चौदह तालाब बनवाए गए इस बात का उल्लेख मिलता है। जैसा कि कहीं उल्लेखित है कि 300 बेळवोला में अण्णिगेरे, शांतलिगे- शासिर में होम्बुज, गंगावाडी में श्रवणबेळगोळ तथा गडिकेश्वर, मल्लसमुद्र, ऐहोळे, पट्टदकल्ल, बादामी तथा कोपण चालुक्य प्रदेश के सभी स्थानों को प्रमुख जैन केंद्र स्थापित करने तथा उनको पनपने के लिए संरक्षण प्राप्त हुआ। कीर्तिवर्मन, विजयादित्य, विनयादित्य, तथा विक्रमादित्य द्वितिय ने जैनधर्म का ललक के साथ समर्थन किया। राजकुमारी कुंकुम महादेवी तथा उसका पति राजा चित्रवाहन दोनों उदारभावना के थे। सच है कि कदंबों ने जैनधर्म को एक शाही प्रतिष्ठा तथा गरिमा प्रदान की। हालांकि, इसे उचित ही कह सकते हैं कि बादामी के सम्राटों ने जैन धर्म की राजनीतिक प्रभावपूर्णता को न केवल बढ़ाया है बल्कि उसके सामाजिक पैमाने में उसकी कुलीनता को संवर्धित किया। जैनों की सामाजिक - सांस्कृतिक तथा कलागत क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी की गहराई तथा आयाम तथा उनकी निरंतर सहभागिता को रिकार्ड किए गए साक्षों से दृढता से तथा यथोचित रूप से निर्मित किया गया जिसका गंभीरता से विचार करना चाहिए। - सनातन नीति तथा चालुक्य शासकों की भागीदारी ऐसी थी कि प्रदेश में कहीं भी, किसी भी प्रकार का उपद्रव या अशांति की घटनाएं घटित नहीं हुई। अपने युग के रंग में अच्छी तरह से रंगे चालुक्य राजाओं ने अपने युग के आदेशों का विश्वास के साथ अनुकरण किया। वे अपनी वचन बद्धता के प्रति गौरवान्वित थे। शासकों की सक्रिय भागीदारी के कारण जैनधर्म चालुक्य समाज में काफी गहरी जडे जमा चुका था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org