________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 157 थे, वे सारे ऐतिहासिक महत्व के थे। विद्यमान ऐतिहासिक डाटा के आधार पर इन शाही मंदिरों पर विचार होना चाहिए। शाही राजवंशों के सदस्य अक्सर इन स्थानों को भेंट देते थे तथा शाही मंदिरों में जाकर अपनी श्रद्धा-भक्ति दिखाते थे और दान देते थे और अपनी भेट तथा दान निधि का रिकार्ड भी पुरालेखित करते थे। शंखबसदी में स्थित अप्रतिम सहस्रकूट की प्रतिमा जो कि ऐसी शिला में बनवायी गयी है जिसमें जिन की 1014 छोटी छोटी प्रतिमाएं खुदवाई गई हैं, जो अत्यंत सुंदर हैं और इसके मध्य तीर्थंकर की एक आदमकद प्रतिमा है जो चतुर्विंशति की परिकल्पना पर बनवायी गयी हैं। सहस्रकूट निश्चित ही बाद का जोड है और जो कि चालुक्यों के शासनकाल की नहीं है। संभवतः ये इनसे भी पहले कल्याण के चालुक्यों के काल की हो सकती है। ... क्रमानुसार शंखबसदी कर्नाटक के प्राचीन जैन मंदिरों में से एक है जो पूर्वी कदंबों के काल तथा कुछ पूर्वी गंगों को मंदिरों के बाद की है जिनका पुरालेखों में उल्लेख किया गया है। किंतु जहाँ तक विद्यमान जिनालयों का संबंध है सबसे प्राचीन सुरक्षित इमारत पाँचवीं सदी के हलसी जैन मंदिर की है। .. छठी सदी के अंतिम दशकों में निर्मित शंख बसदी मंदिर को ऐहोळे तथा बादामी जैन गुफा मंदिरों में प्रथम मंदिर बनने का विशेषाधिकार था। मंदिरों तथा प्रार्थनास्थलों को चलाने के लिए समकालीन शाही लोगों ने ग्राम तथा जमीन दान में दे दिए। सातवीं सदी के प्रारंभ से ही राजाओं से 15 वीं सदी तक प्रचुर मात्रा में दान मिलता रहा। उत्साही अनुयायियों को जिस प्रकार के दान तथा भेंट मिला करते थे उसमें विविधता थी उसमें ग्रामदत्ती, भूदान से लेकर सोना-चाँदी भी शामिल थे। कई पुरालेखों में महत्वपुर्ण तथा प्रतिष्ठित मंदिरों का उल्लेख हुआ है। 1. South Indian Inscriptions, Vol. XX, Inscription No.3, C.E.. 630: Indian Antiquary, Vol. VII. p. 106 2. Ibid, No.4, D. स. 683 3. Ibid, No.5, D. स. 723: Vol,VII, p, 110 4. Ibid, No.6, D. स. 730 5. Ibid, No.7, D. स. 735 6. Karnataka Inscription, Vol 1. No.15 undated, Shiggaon, pp. 17-18 7. Ibid,No.16, D. स. 919, Shiggaon Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org