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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 145 प्रयोग किया है एक जिनवेश्म तथा वसति तथा विशेषण के रूप में त्रिजगगुरोः' पद का प्रयोग जिन के लिए किया है। ___ मेगुडी के मंदिर में अंबिका की प्रतिमा का होना इस ओर संकेत नहीं करता कि उक्त मंदिर नेमिनाथ को समर्पित किया गया था। ____ द्वार के ऊपरी हिस्से की चौखट के मध्य में कायोत्सर्ग मुद्रा अथवा समभंग मुद्रा में बनी जिन की प्रतिमा या शिल्प आमतौर पर ललाटबिंब के रूप में चित्रित है। दुर्भाग्य से दरवाजे की चौखट पर बनी कुलदेवताएँ तथा प्रमुख देवता मूल नायक की प्रतिमाएँ भग्न हैं। सौभाग्य से अंबिका की प्रतिमा हालाँकि थोडी भग्न है किंतु सुरक्षित है। जिस प्रतिमा की पहले सुखनासी कहकर प्रशंसा की गई थी और जो परम शिल्प के पास थी वह अब ऐहोळे के म्युजियम के मंदिर के पास रखी गई है। ऊपरी मंदिर की छत अब गायब है। पूर्वी चालुक्यों की सबसे अच्छी जैन प्रतिमाओं के नमूने मेगुडी मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठापित थी जो ग्रवादियों के हाथों में नहीं पडी। आज उनका केवल प्रारंभिक आकार ही उपलब्ध है। संभवतः यह प्रतिमा तथा यक्ष जो कभी सुखनासी में खडे थे, जो बाद में धार्मिक आंदोलनों के शिकार बन गए। यक्षों की प्रतिमाएँ कहीं भी किसी पहाडी पर नहीं है जबकि जिन की प्रतिमाओं को इस प्रकार नष्ट किया गया है कि उनको पहचान पाना भी अब संभव नहीं है। अंबिका का यक्षीवाला शिल्प भी भग्न है। तीर्थंकर की भग्नप्राय प्रतिमा यह बताती है कि वह मुक्कोडे के नीचे मूलतः सिंहपीठ पर विराजमान है और उसके सिंहासन के पीछे चामरधारी हैं। जिसके पीछे तकिए पर लेटकर आराम करता हुआ दिखाया गया है। सिंहासन की दुर्लभ चौखट पर मकर तथा सिंह के सिर हैं। मुक्कोडे का नाश करना, जिन के लंबे कान, चरण जो आसन की ओर संकेत करते हैं, तथा जिन की मुद्रा का नष्ट होना यही सिद्ध करता है कि प्रतिस्पर्धी धार्मिक-दल का मुख्य लक्ष्य इन प्रतिमागत प्रमुख वैशिष्ट्यपूर्ण स्थानों पर आक्रमण करना था। (राजशेखर एस: 1985:193) यह स्मरण करना होगा कि जब तक कि जिनेंद्रभवन बनवाया गया तबतक ऐहोळे (580) तथा बादामी (595) की जैन गुफाओं का उत्खनन तथा पुलिगेरे के शंखजिनालय तथा परलूर के शांतिश्वर जिनगृह का निर्माण पूर्ण हो चुका था। जाहिर है कि रविकीर्ति ने इन प्रारंभिक प्रार्थनागृहों को देखा होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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